➤ शहीदों की शहादत और राष्ट्र सम्मान को लेकर नाराज़गी
➤ बहिष्कार की अपील, क्रिकेट से ऊपर देश की गरिमा की मांग
ब्लाग : ओजस्वी चौहान
आज का दिन भारतीय क्रिकेट और भारतीय जनता की भावनाओं के लिए बेहद खास और विवादित है। भारत और पाकिस्तान का क्रिकेट मैच भले ही मैदान पर रोमांच लेकर आए, लेकिन मैदान के बाहर एक बड़ा सवाल गूंज रहा है – क्या बीसीसीआई ने पैसा और प्रचार के लिए देश की भावनाओं को दरकिनार कर दिया है?
आलोचक पूछ रहे हैं कि जब देश ने अपने शहीदों को खोया है, जब आतंकवाद ने निर्दोषों की जान ली है, तब पाकिस्तान जैसे देश के साथ क्रिकेट खेलना आखिर किस नैतिकता के तहत सही ठहराया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी कहा था कि “खून और पानी साथ नहीं बह सकते”, लेकिन आलोचना हो रही है कि बीसीसीआई ने इस संदेश को केवल औपचारिकता समझा।

दुनिया की सबसे अमीर स्पोर्ट्स संस्था होने के बावजूद, अगर बीसीसीआई यह कहती है कि पाकिस्तान से न खेलने पर बड़ा आर्थिक नुकसान होगा, तो यह तर्क जनता को स्वीकार नहीं है। लोग पूछ रहे हैं कि क्या शहीदों की शहादत का कोई मोल नहीं है? जब आतंकी हमले होते हैं, जब भारतीयों का खून सड़कों पर बहता है, तब महज 60 सेकेंड का मौन रखकर सब सामान्य कर देना क्या देशभक्ति है?
आज का मैच भले ही क्रिकेट प्रेमियों के लिए जोश और जुनून का कारण बने, लेकिन राष्ट्रवादी भावनाओं से ओत-प्रोत जनता का एक वर्ग इसे “शर्मनाक खेल” मानकर बहिष्कार की अपील कर रहा है। उनका कहना है कि पाकिस्तान के साथ खेलना देश के सम्मान का सौदा है और इसमें शामिल होना शहीदों के बलिदान के साथ विश्वासघात है।
बीसीसीआई और सरकार की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है। अगर बोर्ड सरकार से स्वतंत्र है तो वह पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय सीरीज़ क्यों नहीं खेलता? और अगर सरकार के दबाव में है, तो राष्ट्र की पीड़ा को विज्ञापनों और स्पॉन्सरशिप की रकम में क्यों आँका जा रहा है? यह गुस्सा और सवाल अब हर भारतीय के दिल से उठ रहा है।
जनता से साफ संदेश है — यह केवल क्रिकेट का मैच नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र की गरिमा और शहीदों की शहादत का मुद्दा है। इसलिए इस मैच का बहिष्कार कर एकजुट होकर दिखाना होगा कि भारतीय किसी भी कीमत पर अपने राष्ट्र के सम्मान से समझौता नहीं करेंगे।



